E9 News, नई दिल्ली (ब्यूरो): भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक इस बार देश के पूर्वी छोर पर स्थित ओडिशा के भुवनेश्वर में हुई। इस बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि अभी यह भाजपा का स्वर्णकाल नहीं है। उनका आशय यह था देश के हर राज्य में हर स्तर तक भाजपा की सरकार बनाना उनका लक्ष्य है। अभी की स्थिति में अगर देखें, तो निर्विवाद रूप से भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है। 17 राज्यों में भाजपा और गठबंधन की सरकारें हैं, वहीं 13 राज्यों में अकेले भाजपा की सरकार है, यानी देश के 58 फीसद भूभाग पर भाजपा की सत्ता है। इतने के बावजूद भी यदि भाजपा अध्यक्ष कहते हैं कि यह भाजपा का स्वर्णकाल नहीं है, तो उनके द्वारा निर्धारित लक्ष्य का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। इस बात में कोई शक नहीं कि भाजपा को इन तमाम उपलब्धियों के करीब ले जाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रिय छवि वाले नेतृत्व और अमित शाह के कुशल संगठन की बड़ी भूमिका है। मगर वर्तमान भाजपा को समझने के लिए हमें अतीत की भाजपा पर भी नजर डालनी होगी। भाजपा ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी के लिए पूरब के छोर पर स्थित ओडिशा को चुना। बीस वर्ष बाद भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी ओडिशा में हुई है। इन वर्षो में राजनीति में बहुत कुछ बदल चुका है। भाजपा के प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन में अटल बिहारी वाजपेयी का कथन ‘अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा’ सच दिखने लगा है। जब अटलजी ने यह भाषण दिया था, तब भाजपा केंद्र की सत्ता में दूर-दूर तक कहीं नहीं थी। भाजपा को अपनी स्थापना के बाद पहली बार सत्ता में आने के लिए 16 वर्ष का इंतजार करना पड़ा था। बीस वर्ष पहले 1996 में भाजपा गठबंधन सरकार बनी थी। अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे, लेकिन वह सरकार 13 दिन में ही गिर गई थी। वर्ष-1998 में जब वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने, तो वह सरकार 13 माह ही चल पाई थी और महज एक वोट से गिर गई थी। अपना इस्तीफा देने से पूर्व लोकसभा में अटलजी ने ऐतिहासिक भाषण दिया था। भाषण में उन्होंने जनता का जनादेश हासिल करने का विश्वास जताया था और उनका विश्वास सच साबित हुआ। 1999 के चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन जीत कर आया और अटल जी फिर प्रधानमंत्री बने। उस समय लोगों को ऐसा लगा होगा कि वाजपेयी का 1980 में दिया गया भाषण सच साबित हो चुका है, लेकिन वह प्रण अभी पूर्ण नहीं था, जिसमें उन्होंने कहा था कि अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा। सही मायने में सत्ता में होने के बावजूद वह भी भाजपा का स्वर्णकाल नहीं था। भारतीय राजनीति में वह भाजपा के लिए पहली पीढ़ी के नेताओं का दौर था, जो प. दीन दयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानव दर्शन को अपनी वैचारिक थाती के रूप में लेकर आगे बढ़ रहे थे। वर्ष-2004 में जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार जाती रही व यूपीए सरकार बनी, तब एक बार फिर कमल का सूरज अस्त की ओर बढ़ता नजर आया, अंधेरा घिरने लगा था। बेशक उस दौर में भी भाजपा की सरकार बनी थी लेकिन उसके दायरे सिमटे थे। पश्चिम में गुजरात को भाजपा की झोली में डालने और उसे सतत बरकरार रखने का श्रेय नरेंद्र मोदी को ही जाता है। भाजपा के बुनियादी जनाधार वाले उत्तरप्रदेश में भी भाजपा की स्थिति कमजोर होने लगी थी। दस वर्ष के वनवास के बाद वर्ष-2014 भाजपा के लिए संजीवनी लेकर आया और लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का जादू चला और उत्तरप्रदेश में अमित शाह ने करिश्माई परिणाम दिए। लिहाजा आज फिर भाजपा सत्ता में है। भाजपा का दारोमदार दूसरी पीढ़ी के नेताओं के हाथ में है। देश में प्रचंड बहुमत की भाजपा सरकार चल रही है। ऐसे में अगर वर्तमान नेतृत्व इतने से भी संतुष्ट नहीं है, तो मतलब साफ है कि उसे भाजपा के भविष्य को लेकर बहुत कुछ करना है। शाह और मोदी की कार्य प्रणाली को जो लोग करीब से जानते हैं, वे उनकी परिश्रम क्षमता को जानते होंगे। दूरगामी सोच और कठोर अनुशासन कार्य पद्धति का हिस्सा है। दोनों ही एक सामान्य कार्यकर्ता से सर्वोच्चता तक पहुंचे हैं। संगठन की बुनियादी समझ के मामले में दोनों ही निपुण हैं। आज अगर अमित शाह कार्यकर्ताओं को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि यह अभी भाजपा का सर्वश्रेष्ठ नहीं है, तो उनकी नजर उन राज्यों पर है, जहां भाजपा को मजबूत करना है व सरकार में लाना है। गौरतलब है कि शाह ने यह बयान ओडिशा में दिया है। ओडिशा व बंगाल सीमावर्ती राज्य हैं। ओडिशा में अभी हाल में हुए एक लोकल निकाय चुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिली है, तो पश्चिम बंगाल के कांठी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी को पछाड़कर दूसरे पायदान पर जगह बना ली है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांठी सीट पर भाजपा को नौ फीसद वोट मिले थे, जो अब 30 फीसद है। यह भाजपा के लिए उत्साहजनक परिणाम है। ओडिशा में चुनाव के लिहाज से भाजपा की आशाएं प्रबल हैं। आगामी चुनावों में भाजपा ओडिशा और पश्चिम बंगाल में अच्छा करती है, तो यह भाजपा को उसी स्वर्णकाल की तरफ ले जाएगा, जिस लक्ष्य को अमित शाह साधे बैठे हैं। प. बंगाल में ममता बनर्जी ने तुष्टिकरण की जो हदें पार की हैं, उससे तो भाजपा बेहतर विकल्प के रूप में वहां नजर आ रही है। ओडिशा में भी अब भाजपा को ही विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। शाह कुशल और दूरगामी सोच रखने वाले संगठनकर्ता हैं। मोदी परफॉर्मर प्रधानमंत्री के रूप में अपनी नीतियों को जन-जन तक पहुंचाने व जनता से नियमित संवाद करने वाले सर्वाधिक लोकप्रिय नेता बन चुके हैं। ऐसे मोदी और शाह की जोड़ी अगर उन राज्यों में भी भाजपा की भगवा पताका फहरा दे तो यह आश्चर्य की बात नहीं होगी। ऐसे में अमित शाह अगर कहते हैं कि यह भाजपा का स्वर्णकाल नहीं है, तो मान लेना चाहिए कि भाजपा और मजबूत होगी। भगवा पताका का विस्तार अभी और बड़ा होने वाला है।
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