November 15, 2024

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राष्ट्रपति चुनाव की तैयारी में जुटे दल, भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों की लामबंदी शुरू

E9 News, नई दिल्ली (ब्यूरो) केंद्र की मोदी सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा और अन्य सभी विपक्षी दलों की निगाहें अब जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव पर है। पिछले दिनों यूपी समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के अलाव दर्जनों राज्यों के उपचुनाव में भाजपा की सियासी ताकत बढ़ने से बेचैन विपक्षी दलों ने एकजुटता का राग अलापते हुए राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा को कड़ी चुनौती देने की तैयारी में लामबंदी शुरू कर दी है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल 24 जुलाई को पूरा हो रहा है और उससे पहले राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के चुनाव होने हैं। खासकर राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में जहां भाजपा ने अपनी रणनीति बनाना शुरू कर दिया है, तो वहीं भाजपा को चुनौती देने के लिए तमाम विपक्षी दलों ने कांग्रेस की अगुवाई में महागठबंधन की तैयार शुरू कर दी है, हालांकि भारतीय राजनीति के पुराने इतिहास के पन्ने पलटे जाएं तो महागठबंधन कभी सिरे नहीं चढ़ पाया है। मोदी सरकार के कड़े फैसलों से क्षुब्ध विपक्षी दल संसदीय और विधानसभा चुनाव की तर्ज पर ही राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव में एकजुटता की दुहाई देते आ रहे हैं। इसके लिए पिछले दिनों वामदल और अन्य दलों के वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी से मुलाकात करके जिस प्रकार से राष्ट्रपति चुनाव को लेकर चर्चाओं का दौर चलाया है उससे जाहिर है कि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष ने भाजपा को चुनौती देने का इरादा किया है। हालांकि यह भविष्य के गर्भ में है कि विपक्षी दलों की जारी यह लामबंदी महागठबंधन का रूप लेगी या पिछले प्रयासों की तरह पहले ही दम तोड़ देगी।
सुषमा व नायडू भाजपा का विकल्पः राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव के मद्देनजर जहां भाजपा ने प्रत्याशियों की संभावित सूची तैयार करना शुरू कर दिया है, हालांकि राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल भाजपा के दिग्गज नेताओं में लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ बावरी विध्वंश मामले में केस चलाने के आदेश देकर झटका दिया है। भाजपा कानूनी राय लेने के बाद अपना अंतिम फैसला लेगी, लेकिन भाजपा के पास अभी केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज एक बड़े विकल्प के रूप में है, जिनके नाम को भाजपा राष्ट्रपति पद के लिए आगे ला सकती है। सूत्रों की माने तो भाजपा के पास केंद्रीय मंत्री एम. वेंकैया नायडू का नाम भी इस चुनौती से निपटने के लिए मौजूद है।
विपक्षी दलों में असमंसजः राष्ट्रपति पद के लिए विपक्षी दलों में अभी राष्ट्रपति के नाम को लेकर जद्दोजहद जारी है, लेकिन विपक्षी दल भाजपा के प्रत्याशी को चुनौती देने के लिए एकजुटता बनाकर खेल बिगाड़नें की जुगत में हैं। दरअसल राजद, जदयू व वामदल राष्ट्रपति चुनाव के लिए महागठबंधन की बागडौर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में सौंपने की रणनीति बना रहे हैं, लेकिन कुछ विपक्षी दल प्रणब मुखर्जी को दोबारा मौका देने के पक्ष में है, जबकि शायद खुद प्रणब मुखर्जी फिर से राष्ट्रपति बनने के पक्ष में नहीं है और शायद कांग्रेस भी मुखर्जी को दोबारा मौका देने के मूड में नहीं है। इसलिए अभी विपक्षी दलों में प्रत्याशी को लेकर असमंजस की स्थिति नजर आ रही है। इस लामबंदी में जदयू के नीतिश कुमार, वामदल के सीताराम येचुरी कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी से चर्चा कर चुके हैं। जहां तक प्रत्याशी के चयन का सवाल है कि विपक्षी दलों का मत होगा कि महागठबंधन में शामिल होने वाले दलों की राय से ही राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय किया जाएगा लेकिन जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव के ताजा बयान पर गौर की जाए तो गैर-भाजपाई दलों के लिए राष्ट्रपति पद का एक साझा उम्मीदवार का चयन करके उसके लिए आम सहमति बनाना इतना आसान नहीं है, लेकिन फिर भी समय को देखते हुए प्रयास जारी हैं।
‘महागठबंधन’ का ताना-बानाः कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया से चर्चा के बाद ही शायद माकपा नेता सीताराम येचुरी ने राकांपा प्रमुख शरद पवार, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, भाकपा नेता सुधाकर राव रेड्डी के साथ महागठबंधन खड़ा करने को लेकर चर्चाओं का दौर चलाया, तो वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से राष्ट्रपति चुनाव को लेकर महागठबंधन के मुद्दे पर चर्चा की है। कांग्रेस के अगुवाई में महागठबंधन का ताना-बाना बुनने के लिए विपक्षी दल अन्य विपक्षी दलों के नेताओं से भी मुलाकात करके चर्चाओं के दौर को गति देने में लगे हुए हैं। राजनीतिकारों की माने तो पुराने सियासी गठजोड़ के अनुभव की पृष्ठभूमि में नजर ड़ाली जाए तो ‘महागठबंधन’ बनाने की राह इतना आसान नहीं है? विपक्षी दलों में समाजवादी पार्टी जैसे कुछ दलों की ऐन समय पर पलटी का इतिहास ही इस महागठबंधन को ‘काठ की हांडी’ साबित करने में काफी हैं।
यूपी की अहम भूमिकाः राष्ट्रपति का चुनाव 4 हजार 896 जनप्रतिनिधि मिलकर करते हैं। इनमें से 776 सांसद लोकसभा और राज्यसभा से होते हैं। जबकि देश के अलग-अलग राज्यों के 4 हजार 120 विधायक भी राष्ट्रपति चुनावों में वोटिंग करते हैं। इन विधायकों के वोटों का मूल्य राज्य की जनसंख्या के आधार पर तय होता है। पिछले महीने ही पांच राज्यों में से चार राज्यों में भाजपा की सरकार गठित होने से उसकी सियासी नींव मजबूत की है, जिसमें खासकर उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जहां भाजपा को मिला प्रचंड बहुमत राष्ट्रपति चुनाव में बेहद लाभकारी साबित होगा। इसलिए उत्तर प्रदेश के विधायकों की राष्ट्रपति चुनाव में सबसे बड़ी भूमिका होगी।