E9 News लखनऊ: शासी निकायों में ‘वंदे मातरम’ गाने को लेकर छिड़े विवाद के बीच उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि संविधान द्वारा दी गयी मान्यता का सम्मान सबको करना चाहिये।
राज्यपाल ने सीतापुर स्थित मौलाना आजाद इंस्टीट्यूट आफ साईंस एण्ड टेक्नोलॉजी ह्यूमैनिटीज के वाषिर्क समारोह के उद्घाटन अवसर पर कहा कि शहीदों ने देश को आजाद कराने के लिये ‘वंदे मातरम’ कहते-कहते फांसी के फंदे को स्वीकार किया था, मगर आजादी के 45 वर्ष बाद तक संसद में ‘जन गण मन’ एवं ‘वंदे मातरम’ नहीं गाया जाता था। राज्यपाल ने अपना मत देते हुए कहा कि अगर देश की सबसे बड़ी पंचायत यानि संसद में वंदे मातरम गाया जाएगा तो उसका संदेश पूरे देश तक पहुंचेगा। इस प्रयास के बाद संसद में 24 नवम्बर, 1992 से राष्ट्रगान तथा 23 दिसम्बर 1992 को राष्ट्रगीत गाए जाने का शुभारम्भ हुआ। राज्यपाल ने कहा कि संविधान द्वारा दी गयी मान्यता का सम्मान सबको करना चाहिये। राज्यपाल की यह टिप्पणी ऐसे वक्त आई है जब मेरठ नगर निगम में ‘वंदे मातरम’ गाने को लेकर एक वर्ग के सभासदों द्वारा कड़ा विरोध दर्ज किया गया था। बरेली नगर निगम में भी इसी मुद्दे पर खींचतान देखी गयी थी। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी राष्ट्रीय गीत के गायन को लेकर उठे विवाद पर अफसोस जाहिर करते हुए कहा था कि हमें संकीर्णता से बाहर निकलने के लिए रास्ता तलाशना होगा। नाईक ने मौलाना अबुल कलाम आजाद को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि मौलाना आजाद प्रसिद्ध कवि, लेखक, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी एवं देश के पहले शिक्षा मंत्री थे। उन्हें अनेक भाषाओं पर प्रभुत्व प्राप्त था।
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