November 14, 2024

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शिवराज सिंह चौहान को गुस्सा क्यों आ रहा है!

E9 News, नई दिल्ली (ब्यूरो) : मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान इन दिनों गुस्से में हैं. अफसरों की तो जब तब क्लास ले लेते थे, अब मंत्रियों की बारी है. कार्यसमिति की बैठक के बाद मंत्रालय में केबिनेट की मीटिंग में उनका गुस्सा फूट पड़ा. गुस्सा करना शिवराजसिंह के तासीर में नहीं है. शिवराजसिंह चौहान की छवि एक ऐसे नेता की है जो जमीनी है. जो विनम्र हैं और विपरीत स्थितियों में भी आपा नहीं खोते हैं. फिर ऐसा क्या हुआ जो उन्हें अपने चिर-परिचित स्वभाव के खिलाफ व्यवहार करना पड़ रहा है. शिवराजसिंह का गुस्सा यूं ही नहीं है. राजनीतिक हल्कों में इसके और भी कयास लगाये जा रहे हैं. मतलब भी निकाले जा रहे हैं. एक आम धारणा बनती नजर आ रही है कि शिवराजसिंह चौहान अकेले पड़ रहे हैं . साथी मंत्रियों ने उनसे किनारा कर लिया है और वे शिवराजसिंह से सहयोग नहीं कर रहे हैं. हालांकि फौरीतौर पर देखें तो यह सब बेकार और बेबुनियाद बातें लगती हैं लेकिन कुछ तो है जो शिवराजसिंह को गुस्सा करने के लिए उकसा रहा है. शिवराजसिंह चौहान का गुस्सा पहली बार अटेर के चुनाव में फूटा था जब उन्होंने सिंधिया घराने को कटघरे में खड़ा किया था. तब इसे राजनीतिक बयानबाजी का हिस्सा समझ कर बहुत गंभीरता से नहीं लिया गया. ऐसा लगता है कि वे सब समझते हुए भी मंत्री सिंधिया को निशाने पर ले रहे थे. यदा-कदा एक अन्य मंत्री मायासिंह भी उनके निशाने पर थीं. इसके बाद अटेर विधानसभा उपचुनाव में मिली पराजय को शिवराजसिंह ने व्यक्तिगत रूप से लिया. इस बात को उनकी ही पार्टी के लोगों ने बहुत गंभीरता से नहीं लिया लेकिन कार्यसमिति में मंत्रियों की गैर-मौजूदगी को लेकर जो गुस्सा जाहिर किया, उससे राजनीतिक खलबली मच गई. नाराज होने तक भी बात समझ में आती है लेकिन गुस्सा मंत्रियों के इस्तीफा देने तक पहुंच जाए तो मामला गंभीर हो जाता है. आखिर ऐसा क्या हुआ और मंत्रियों ने कार्यसमिति की बैठक को अनदेखा क्यों किया? एक सवाल है और इस पर अनेक सवाल खड़े हो रहे हैं. मुख्यमंत्री का गुस्सा जाहिर हो गया है और उनके प्रति मंत्रियों की अनदेखी और अवहेलना भी. ऐसे में आने वाले तूफान का संकेत समझा जाए तो भी बहुत गैर-जरूरी नहीं होगा. भाजपा से निकटता रखने वाले लोग मुख्यमंत्री के इस गुस्से का कारण समझ गए हैं लेकिन मंत्रियों की अनदेखी का एकमात्र कारण मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का लगभग एकला चलो की तर्ज पर कार्यक्रम और योजनाओं का संचालन करना है. नर्मदा सेवा यात्रा आरंभ से लेकर अब तक अकेले शिवराजसिंह चौहान की मुहिम बन गई है. औपचारिकता के तौर पर भले ही मंत्री अपनी आमद दर्ज करा रहे हों लेकिन उनकी सहभागिता कहीं दिख नहीं रही है. जाहिर तौर पर यह बात सामने आ चुकी है कि नर्मदा सेवा यात्रा के बहाने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान जमीन तलाश रहे हैं. लगातार उपचुनावों और स्थानीय निकायों के चुनाव में भाजपा की जीत को देखते हुए आश्वस्त हुआ जा सकता है कि अगली पारी भी भाजपा की होगी लेकिन अगले मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान होंगे या नहीं, इस पर शंका के बादल घिर रहे हैं. बीते एक बरस में भाजपा के भीतर जो घमासान भीतर ही भीतर मचा हुआ है, वह उन्हें बैचेन किए हुए है. बाबूलाल गौर और सरताजसिंह को उम्र का पता बताकर घर बिठा दिया गया. सरताज तो थोड़े समय बाद खामोश हो गए लेकिन गौर की सक्रियता में कोई कमी नहीं आयी है. विधानसभा सत्र के दौरान कई बार अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर मुसीबत में डालते रहे हैं. 2017 के आधा वर्ष गुजर जाने के बाद टिकट के लिए जो लामबंदी शुरू होगी, वह भाजपा को और शिवराजसिंह चौहान को मुसीबत में डालेगी. सत्ता सुख पाने के लिए हर आदमी टिकट का दावेदार होगा और रणनीति यह है कि जिन क्षेत्रों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, उन क्षेत्रों में भाजपा अपना प्रत्याशी बदलने का प्रयोग करेगी. टिकट वितरण में उनकी भूमिका कितनी होगी, यह समय बताएगा लेकिन उनका गुस्सा कई संकेत दे रहा है. नर्मदा सेवा यात्रा के  दौरान अपने राजनीति उत्तराधिकारी के रूप में अपने बेटे को मैदान में उतारने का जो ऐलान हुआ, उसका भी असर दिख रहा है. उनके सहयोगियों के बेटे भी हैं जो 2018 के चुनाव में दावेदार होंगे. मंत्रियों में इस बात को लेकर भी गुस्सा है कि सब तरफ शिवराजसिंह चौहान की दिखाई देते हैं. चर्चा से लेकर विज्ञापनों तक में उनकी ही तस्वीर आ रही है. हालांकि विज्ञापन में मंत्रियों की तस्वीर छापने या नहीं छापने का फैसला अदालती है सो इस मामले में स्वयं शिवराजसिंह चौहान असहाय हैं लेकिन कोई दूसरा रास्ता भी नहीं ढूंढ़ा गया जिसमें मंत्रियों की ब्रांडिंग हो पाती. वे इस बात से भी चिंता में हैं कि इन स्थितियों में उन्हें शिवराजसिंह के चेहरे को आगे रखकर चुनाव मैदान में उतरना होगा और जीत की गारंटी शिवराजसिंह चौहान ही होंगे. ऐसे में मंत्रीगण बस मंत्री बने रहने की औपचारिकता पूरी करते दिखते हैं. मंत्रियों की उपेक्षा और अपनी ब्रांडिंग के कारण बन रही स्थिति से स्वयं शिवराजसिंह चौहान बेखबर नहीं हैं. कल तक पूरा मंत्रिमंडल उनके साथ था लेकिन आज वे स्वयं को अकेला महसूस कर रहे हैं. और इस अकेलेपन के डर के कारण उनके भीतर छिपा गुस्सा बाहर आ रहा है. हालांकि ऐसा हो, यह जरूरी नहीं है लेकिन राजनीतिक हलकों में ऐसी चर्चा उन्हें अस्थिर करने के लिए भी हो सकती है. यह बात तो सही है कि लगभग 12 वर्ष से मुख्यमंत्री कुर्सी पर बने रहने और जनता में लोकप्रिय होने के कारण उनके प्रति ईष्र्या का भाव तो पनपा है. कई बार उन्हें सत्ता से बाहर करने की कोशिश की गई और मीडिया में यह अफवाह उड़ायी गई कि सत्ता से वे बाहर हो रहे हैं लेकिन बेपरवाह शिवराजसिंह चौहान दुगुने ताकत से अपने काम में जुट गए हैं. एक खबर उनके गुस्से को लेकर यह भी है कि मंत्रियों और अधिकारियों पर गुस्से का कारण प्रशासनिक कसावट है क्योंकि उन्हें लग रहा है कि कांग्रेस भीतर ही भीतर ऐसी तैयारी कर रही है कि 2018 के चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर मिले. इस चुनाव में भाजपा को अपेक्षित सीटें नहीं मिल पाती हैं तो पराजय का ठीकरा शिवराजसिंह चौहान के मत्थे फूटेगा और वे किसी भी हालत में नहीं चाहते हैं कि कांग्रेस अपने मुहिम में कामयाब हो जाए. भाजपा के अंदरूनी खाने से खबर आती है कि मंत्रियों का प्रदर्शन बेहतर नहीं है. इस बात का ताजा उदाहरण जुलानिया का देते हैं जब मंत्री के सामने ही वे झगड़ बैठते हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री के तौर पर प्रशासनिक कसावट के लिए उनका गुस्सा होना जायज भी है. खैर, अभी तो बातें हवा में है. ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो समय तय करेगा लेकिन एक विनम्र मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का गुस्सा चर्चा में है.