E9 News, नई दिल्ली (ब्यूरो) मुस्लिम समाज के तीन तलाक के चर्चित और विवादित मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार सधी और परोक्ष राय जाहिर की है। भुवनेश्वर में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उन्होंने कहा, हम नहीं चाहते कि तीन तलाक के मुद्दे पर मुस्लिम समाज में टकराव हो। अब मुस्लिम बहनों को भी न्याय मिलना चाहिए। किसी का शोषण नहीं होना चाहिए। मुस्लिम महिलाएं बेहद कष्ट में हैं। इस कष्ट का हल करना चाहिए। ऐसे में सवाल उठता है कि हल कौन करेगा? मुस्लिम समाज के कई धर्मगुरु तीन तलाक पर अड़े हैं। राजनीतिक पार्टियां वोट बैंक के कारण मुंह नहीं खोल रही हैं। सभी मामले पर राजनीति करने की बाट जोह रहे हैं। ऐसे में इसका हल निकलना नामुमकिन है। इसलिए अब प्रधानमंत्री के लिए राजधर्म निभाने का वक्त आ गया है। जिस तरह सती प्रथा का अंत हुआ है, उसी तरह तीन तलाक को भी बंद होना ही चाहिए। मनुस्मृति के सातवें अध्याय के दूसरे श्लोक में लिखा गया है, राजा परम विद्वान और तपस्वी, न्यायप्रिय होना चाहिए। वह न किसी वर्ग, समुदाय या संप्रदाय के साथ अन्याय करने वाला हो, ‘सबका साथ और सबका विकास’ उसके जीवन की तपश्चर्या और उद्देश्य भी हो। वर्तमान सरकार सनातन संस्कृति को ही अपना आधार मानती है। इसीलिए ‘सबका साथ और सबका विकास’ का नारा दिया है। यह नारा तभी फलीभूत हो सकेगा, जब मुस्लिम महिलाओं के साथ पूरा न्याय होगा, यानी तीन तलाक की कुप्रथा से उन्हें मुक्ति मिलेगी। उत्तरप्रदेश में तीन तलाक को मुद्दा बनाने के बाद ही मुसलमान बहुल क्षेत्रों में भाजपा को रिकार्ड जीत मिली है। यह इस बात का संकेत है कि समाज की महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी तीन तलाक की कुप्रथा के खिलाफ हैं, लेकिन धर्म के नाम पर धर्मगुरुओं के कोप का भाजन बनने के डर से वे खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं। ऐसे में शासन का कर्तव्य बनता है कि वह खुद ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करे और राजधर्म निभाए। हालांकि, मोदी ने तीन तलाक को सामाजिक बुराई माना है और कहा है कि यदि कोई सामाजिक बुराई है, तो हमें समाज को जगाना चाहिए और मुस्लिम महिलाओं को न्याय उपलब्ध कराना चाहिए। यानी, मोदी राजधर्म निभाने को तत्पर दिख रहे हैं। सबसे पहले यह समझा जाना जरूरी है कि स्त्री चाहे किसी भी धर्म को मानने वाली हो, उसका वजूद एक ‘महिला’ के रूप में सर्वोच्च रहता है और समस्त अधिकार इसी पहचान से निकलते हैं। भारत की यह विडंबना रही है कि मुस्लिम औरतों के अधिकारों का संवहन उनके स्त्री होने के बजाए मुसलमान होने से दिखाया गया और इस संदर्भ में मुस्लिम सामाजिक कानून ‘शरिया’ को जरिया बनाया गया। यदि स्थिति का यही पक्ष लिया जाए, तो विभिन्न राज्य एवं केंद्र सरकारें महिला सशक्तिकरण के लिए जो भी योजनाएं चलाती हैं, उन सभी को ‘शरिया’ का पाबंद होना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में भारत को हम धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र किस प्रकार से कह सकते हैं, परंतु राजनीति के तहत लगभग सभी सरकारें आंखें बंद करके मुस्लिम कट्टरपंथियों की हां में हां मिलाती रहीं और इसका शिकार मुस्लिम महिलाओं को बनना पड़ा।
धार्मिक नियम, कायदे व कानून निजी स्तर पर श्रद्धा के मुताबिक होते हैं। समाज में उन्हें एक समान रूप से लागू करने का अर्थ निजी स्वतंत्रता का हनन ही होता है। जब भारत का कानून किसी भी महिला को उसके पति की संपत्ति में बराबर का शरीक मानता है, तो मुस्लिम महिला को उससे किस तरह महरूम रखा जा सकता है? किसी भी महिला को किस तरह तीन बार तलाक बोल देने से कोई भी पुरुष अपनी जिंदगी से बाहर निकाल कर लावारिसों जैसी हालत में पहुंचा सकता है? यह अमानवीयता किसी भी धर्म में जायज नहीं ठहराई जा सकती। यही वजह है कि दुनिया के 22 इस्लामी देशों ने इस कुप्रथा को अपने यहां समाप्त कर दिया है, मगर भारत में ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है। मुस्लिम समाज की सबसे बड़ी कुप्रथा तीन तलाक पर अंकुश लगाने के लिए यह अच्छा मौका भी है और दस्तूर भी है। बदलाव के लिए चल रही अदालती लड़ाई के साथ अब यह मामला अपने चरम पर पहुंच गया है। अब यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाला प्रशासन इस मुद्दे पर एक सुरक्षित मोर्चा हासिल कर चुका है। तीन तलाक का मामला लाने की पहल के लिए निकाह, हलाला (तलाकशुदा पत्नी को दूसरे पुरुष के साथ शादी खत्म करने और अपने पूर्व पति के साथ फिर से शादी करने के पहले उससे तलाक लेने के लिए दबाव डालना) और बहुविवाह के मसले पर न तो कोई राजनेता सामने आया है, न ही मौलवी और इस्लामिक विद्वान। इस मामले को तो मुस्लिम महिलाओं ने ही उठाया है, जो स्वयं पर धर्म के नाम पर होने वाले सदियों से जारी अत्याचार से पीड़ित हैं व मुस्लिम समाज में व्याप्त इस बुराई को लेकर उनमें गुस्सा है। तीन तलाक की प्रथा, जिसके बारे में अब वाट्सएप एवं एसएमएस के जरिए लोगों को बताया जा रहा है, को अब कुछ प्रमुख मुस्लिम महिला संगठनों ने भी कुरान के खिलाफ करार दिया है। उत्तरप्रदेश में 19 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं ने अप्रत्याशित रूप से भाजपा को वोट दिया। ज्यादातर मुस्लिम महिलाओं ने मौलवियों की अपील के खिलाफ जाते हुए भाजपा को वोट दिया। यहां मौलवियों ने गैर-भाजपा उम्मीदवार को, चाहे वह सपा का हो या बसपा का, जिताने की अपील की थी। इस इलाके में मुस्लिम महिलाओं ने अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए मतदान किया। यानी, मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक के विरोध के लिए भाजपा को वोट दिया। अब उसका कर्तव्य है कि वह कानून का सहारा लेकर महिलाओं को न्याय दिलवाए। वैसे, इस मुद्दे पर बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला देता है। अगर शीर्ष अदालत तीन तलाक पर केंद्रित होती है, तो इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही जाएगा और एक नई भाजपा का उदय होगा।
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