E9 News, शिमला (कीर्ति कौशल) : हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मंसूर अहमद मीर की सेवानिवृत्ति पर शनिवार को हाई कोर्ट में फुल कोर्ट रेफरेंस का आयोजन किया गया। वह अपना कार्यभार 24 अप्रैल को छोड़ेंगे। इस मौके पर बार एसोसिएशन के प्रधान बीपी शर्मा, राज्य सरकार के महाधिवक्ता श्रवण डोगरा, केंद्र सरकार के असिस्टेंट सॉलिसीटर जनरल अशोक शर्मा ने मुख्य न्यायाधीश मीर को न्यायाप्रिय, कर्मठ और कानून का ज्ञाता बताया। 25 अप्रैल, 1955 को जन्मे न्यायमूर्ति मंसूर अहमद मीर जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले के रहने वाले हैं। वर्ष 1978 में उन्होंने एलएलबी की पढ़ाई करने के बाद उसी साल वकालत शुरू की और वर्ष 1992 में उन्होंने उच्चतर न्यायिक सेवाएं परीक्षा में पूरे राज्य में प्रथम स्थान ग्रहण किया। 27 मई, 1993 को उन्हें कुपवाड़ा का प्रमुख जिला एवं सत्र न्यायाधीश नियुक्त किया गया। इसके अलावा वह अनंतनाग, बड़गाम और श्रीनगर में भी प्रमुख जिला एवं सत्र न्यायाधीश रहे। वह श्रीनगर में वाहन दुर्घटना क्षतिपूर्ति न्यायाधिकरण तथा टाडा कोर्ट के पीठासीन अधिकारी तथा कश्मीर डिवीजन में पोटा कोर्ट में विशेष न्यायाधीश भी रहे। उन्होंने 31 जनवरी, 2005 को जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के अपर न्यायाधीश के रूप में शपथ ली तथा सात जुलाई, 2007 को उन्हें जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया। मुख्य न्यायाधीश मंसूर अहमद मीर की सेवानिवृत्ति के बाद हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश संजय करोल 25 अप्रैल से कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश का पदभार संभालेंगे। भारत सरकार ने इस बारे में 21 अप्रैल को अधिसूचना जारी कर दी है। कांगड़ा जिला के गरनी गांव के रहने वाले संजय करोल का जन्म 23 अगस्त, 1961 को शिमला में हुआ था। शिमला से प्रारंभिक शिक्षा करने के पश्चात इन्होने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से विधि की डिग्री हासिल की और वर्ष 1986 में सुप्रीम कोर्ट से वकालत शुरू की। आठ मार्च 2007 को उन्हें प्रदेश हाई कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
न्यायमूर्ति मंसूर अहमद मीर की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां :
* हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मंसूर अहमद मीर ने प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का कार्यभार 27 नवंबर, 2013 को संभाला था और वह 24 अप्रैल, 2017 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने समाज के बड़े वर्ग तथा राज्य हित के मामलों में अनेक महत्त्वपूर्ण फैसले लिए।
* उनके कार्यकाल में उच्च न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या 59133 से घटकर 29800 तक पहुंच गई, जबकि पांच वर्ष से अधिक पुराने लंबित मामलों की संख्या 10135 से घटकर 6735 पर आ चुकी है।
* उन्होंने एकल बैंच के 3196 मामलों सहित कुल 35710 मामलों का निपटारा किया। मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत 72 करोड़ रुपए, जबकि भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत 10-15 करोड़ रुपए की राशि वसूली गई।
* प्रदेश उच्च न्यायालय में मार्च, 2012 से अप्रैल, 2017 की अवधि के दौरान 25 लोक अदालतों का आयोजन किया गया, जिनमें 2382 मामले आए और 390 का निपटारा किया गया। मध्यस्थता व्यवस्था को विशेष तवज्जो प्रदान की गई और राज्य में इस व्यवस्था के तहत सुनवाई के लिए 6996 मामले आए, जिनमें से 1638 का निपटारा किया गया।
* न्यायमूर्ति मीर ने अपने कार्यकाल के दौरान प्रदेश उच्च न्यायालय में विभिन्न श्रेणियों की 367 नियुक्तियां तथा पदोन्नतियां कीं। इसके साथ ही ई-न्यायालय शुल्क प्रणाली लागू की गई तथा राज्य के सिविल व सत्र मंडलों के सभी 11 मुख्यालयों में वीडियो कान्फ्रेंसिंग सुविधा का परिचालन किया।
* विधिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए हिमाचल प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की स्थापना इनके कार्यकाल की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि रही और इसका संचालन भी शुरू किया गया।
* उच्च न्यायालय में 50 लाख रुपए की लागत से एक व्यायामशाला की स्थापना की जा रही है। राज्य के अधीनस्थ न्यायालयों में जनवरी, 2014 से मार्च, 2017 के बीच 11,18,428 मामलों का निपटारा किया गया है। इसके अलावा राज्य भर में आयोजित लोक अदालतों में 3.21 लाख मामले निपटाए गए।
* हिमाचल प्रदेश न्यायिक अकादमी परिसर के प्रथम चरण का निर्माण लगभग पूरा होने वाला है, जबकि छात्रावास खंड का लोकार्पण पहले ही किया जा चुका है। इसके अलावा राज्य में 5107 विधिक साक्षरता शिविरों का आयोजन किया गया, जिनमें 338670 लोगों को लाभान्वित किया गया।
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