
E9 News शिमला: उत्पाती बंदरों ने हिमाचल सरकार के सारे उपायों को नाकों चने चबवा दिए हैं। आलम यह है कि तीन साल में सरकार ने बंदर पकड़ने पर 3.25 करोड़ रुपये से अधिक की रकम खर्च कर दी है, लेकिन बंदरों का आतंक बरकरार है। बंदरों को पकड़ कई मंकी कैचर लखपति हो गए, परंतु किसानों की फसल अभी भी सुरक्षित नहीं है। बंदरों के नसबंदी का उपाय भी काम नहीं आया है। सरकार ने हिमाचल से बंदरों को नॉर्थ-ईस्ट राज्यों में भेजने की तैयारी की, मगर अभी तक योजना सिरे नहीं चढ़ी है। फिर राज्य सरकार ने केंद्र से बंदरों को वर्मिन (फसलों व इनसान के लिए खतरा) घोषित करने का आग्रह किया। केंद्र सरकार ने बंदरों को मारने की अनुमति दे दी, पर समस्या यह है कि कोई भी एजेंसी, किसान अथवा सरकारी विभाग बंदरों को मारने के लिए आगे नहीं आ रहा है। अधिसूचना जारी हुए लंबा अरसा बीत गया और अभी तक सरकार के पास एक भी बंदर को मारने की सूचना नहीं है। यही नहीं, सरकार ने बंदरों को मारने के लिए इनामी राशि भी घोषित की थी, जिसका भी कोई असर नहीं हुआ। अब हिमाचल की किसान सभा ने इस मसले पर निर्णायक लड़ाई छेड़ने का फैसला लिया है।धर्मशाला, पालमपुर व नूरपुर फॉरेस्ट सर्किल में बंदरों को पकड़ कर मदन लाल नामक व्यक्ति ने तीन साल में दस लाख रुपये से अधिक की कमाई की। मदन लाल पालमपुर तहसील के तहत गोपालपुर गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने तीन साल में 10 लाख, 15 हजार, 840 रुपये की कमाई बंदरों को पकड़ कर की। मंडी जिला के नाल गांव के प्रेम सिंह ने तीन साल में 6.43 लाख रुपये कमाए। यही नहीं, उत्तर प्रदेश के मथुरा व नहुआ जिला के रहने वाले मंकी कैचर भी लखपति हो गए। हरियाणा के बदरुद्दीन ने भी लाखों कमाए।
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